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पानी सरी बग्यो आशु
खोलो कहिलै भएन
बल्ल बल्ल बनएको घर
त्यो पनि तन पुरा भएन
आफन्तले गरे मलाई घात
पराइको त कुरै रहेन
साथ दिन्छु भन्नेले छोड्यो हात
नलड्ने त कुरै भएन
एउटा सपना त देखेथे
त्यो पनि त पुरा भएन
पानी सारी बग्यो आशु
त्यसको कुनै मोल रहेन
हास्न त धेरै नै हासे
तर यो "ज्योती " खुशी कहिलै
Jyoti shrestha
Nabalparasi
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